फ़रमान यह फ़ारसी शब्द है। फ़रमान एकवचन है। इसका अनेक वचन फ़रामीन है। फ़रमान में असल (मुलशब्द) संस्कृत “प्रमाण” है। फ़रमान, प्रमाण इस संस्कृत शब्द से बना है इसका अर्थ (मतलब) सबुत, पुरावा, निशानी, आयत, बैयीना है, और चीजें गिनने का पैमाना भी है।
फ़ारसी / उर्दू भाषा में फ़रमान से किसी बादशाह, खलीफा, वली या राजा का हुकुम या आदेश ऐसा मतलब लिया जाता है और हम महेदवी लोग भी फ़रमान से खातीमुलअवलीया महेदी माउद (अस) ने दिया हुवा अल्लाह का हुक्म मानते है।
अल्लाह तआला क़ुरआन में जो हुक्म मुहम्मद सलअम के जरिए से कुछ करने या कुछ न करने के लिए दिए हैं वो हुकुमात हैं और विलायत मुहम्मदीया में वलियाँ जो हुकुम देते हैं वो फ़रामीन हैं। इमाम महेदी माउद (अस) आखरुज्जमा मासुम अनलखता हैं, आपके फ़रामीन अल्लाह के हुक्म से हैं इसलिए रसुलल्लाह के हुक्म की तरह आपके फ़रामीन भी फर्ज़ हैं, और अदा करना ही करना है।
रसुलल्लाह के हुक्म और महेदी माउद (अस) के फ़रामीन में कोई भी फ़र्क़ नहीं। दोनों अल्लाह के हुक्म से दिए गए है। महेदी माउद (अस) के फ़रमान की अहेमियत रसुलल्लाह के हुक्म की तरह है, किसी सुलतान, तक़्तनशीन, दुनयवी बादशाह, आलीम, मुफ़्ती, फ़ाज़िल, मुहद्दसीन व मुज़्तहीदीन से भी जादा अहेमियत महेदी माउद (अस) के फ़रमान व रसुलल्लाह के हुक्म की है क्योंके महेदी व रसुलल्लाह मासुम अनलखता हैं व बाक़ी मासुम नहीं हैं।
महेदी माउद (अस) सय्यद मुहम्मद जौनपुरी अपनी हयात पाक में क़ुरआन व सुन्नत रसुलल्लाह (सअस) की तबलीग की है। क़ुरआन की तफ़सीर “मुरादअल्लाह” बयान की, और अल्लाह के हर हुक्म को आपने फर्ज़ फ़रमाया। आपका फ़रमान है क़ुरआन का हर हुक्म फर्ज़ है, कोई भी हुक्म मन्सुख (रद्द) नहीं। हर हुक्म पर अमल करना आपका फ़रमान है, आपके ये फ़रमान फ़ारसी भाषा में हैं। आपके सहाबा, खलीफाओं ने लिखी अपनी किताबों में ये फ़रमान नक़ल करके कलमबंद किया है। महेदवियों को चाहिए के सिर्फ फ़ारसी जुबान में मौजुद फ़रमान ही नहीं बल्के अरबी क़ुरआन में मौजुद अल्लाह के हर हुक्म को भी महेदी माउद (अस) का फ़रमान जाने और उनपर भी फ़रमान की तरह अमल करें।
फ़ारसी / उर्दू भाषा में फ़रमान से किसी बादशाह, खलीफा, वली या राजा का हुकुम या आदेश ऐसा मतलब लिया जाता है और हम महेदवी लोग भी फ़रमान से खातीमुलअवलीया महेदी माउद (अस) ने दिया हुवा अल्लाह का हुक्म मानते है।
अल्लाह तआला क़ुरआन में जो हुक्म मुहम्मद सलअम के जरिए से कुछ करने या कुछ न करने के लिए दिए हैं वो हुकुमात हैं और विलायत मुहम्मदीया में वलियाँ जो हुकुम देते हैं वो फ़रामीन हैं। इमाम महेदी माउद (अस) आखरुज्जमा मासुम अनलखता हैं, आपके फ़रामीन अल्लाह के हुक्म से हैं इसलिए रसुलल्लाह के हुक्म की तरह आपके फ़रामीन भी फर्ज़ हैं, और अदा करना ही करना है।
रसुलल्लाह के हुक्म और महेदी माउद (अस) के फ़रामीन में कोई भी फ़र्क़ नहीं। दोनों अल्लाह के हुक्म से दिए गए है। महेदी माउद (अस) के फ़रमान की अहेमियत रसुलल्लाह के हुक्म की तरह है, किसी सुलतान, तक़्तनशीन, दुनयवी बादशाह, आलीम, मुफ़्ती, फ़ाज़िल, मुहद्दसीन व मुज़्तहीदीन से भी जादा अहेमियत महेदी माउद (अस) के फ़रमान व रसुलल्लाह के हुक्म की है क्योंके महेदी व रसुलल्लाह मासुम अनलखता हैं व बाक़ी मासुम नहीं हैं।
महेदी माउद (अस) सय्यद मुहम्मद जौनपुरी अपनी हयात पाक में क़ुरआन व सुन्नत रसुलल्लाह (सअस) की तबलीग की है। क़ुरआन की तफ़सीर “मुरादअल्लाह” बयान की, और अल्लाह के हर हुक्म को आपने फर्ज़ फ़रमाया। आपका फ़रमान है क़ुरआन का हर हुक्म फर्ज़ है, कोई भी हुक्म मन्सुख (रद्द) नहीं। हर हुक्म पर अमल करना आपका फ़रमान है, आपके ये फ़रमान फ़ारसी भाषा में हैं। आपके सहाबा, खलीफाओं ने लिखी अपनी किताबों में ये फ़रमान नक़ल करके कलमबंद किया है। महेदवियों को चाहिए के सिर्फ फ़ारसी जुबान में मौजुद फ़रमान ही नहीं बल्के अरबी क़ुरआन में मौजुद अल्लाह के हर हुक्म को भी महेदी माउद (अस) का फ़रमान जाने और उनपर भी फ़रमान की तरह अमल करें।
- महेदी माउद (अस) का फ़रमान है के, महेदी माउद (अस) की तसदीक़ करना अच्छे अमल करना है, सिर्फ महेदी को मानना नहीं।
- (न.मि.अ.र – १९३). - महेदी माउद (अस) ने फ़रमाया के, सच्चा मोमीन वो है जिसने अपने आँख से या दिल के आँख से या ख़्वाब में अल्लाह को देखा हो। अगर कोई शक़्स इन तिनों से भी अल्लाह को न देखा मगर अल्लाह को देखने की ख्वाईश बहुत जादा रखता हो तो भी वो मोमीन है।
- महेदी माउद (अस) का फ़रमान है के, अल्लाह को खड़े हुवे, बैठे हुवे, लेटे हुवे याद करो और ये सिफ़त महेदविया गिरोह की है।
- महेदी माउद (अस) ने क़ुरआन के एक आयत का बयान करते हुवे फ़रमाया है के, जब तुम नशे के हालत में हो तो नमाज़ के पास मत जावो। आपने नशे का मतलब दुनियाँ का भी नशा फ़रमाया है।
- महेदी माउद (अस) ने फ़रमाया के, अल्लाह ने इस बंदा को उस वक़्त भेजा के जब दीन-ए-इस्लाम का मतलब लोगों में जिंदा, बाक़ी न था और जो बाक़ी था सिर्फ मज़जुबो में। (याने नेक वली सिफ़ात लोगों में बाकी था।)
- हज़रत इमाम महेदी माउद (अस) ने फ़रमाया के, उस शक़्स की जाहीर इबादत (शरीयत) बेफ़ायदा है अगर उसका बातीन (हक़ीक़त) बे-मतलब है तो।
- (न.मि.अ.र - २२५)
- बंदगीमियाँ शाह दिलावर (रजी) ने कहा के, मुहाजीर को चाहिए के महेदी माउद (अस) की पैरवी करते हुवे हर दिन फ़ुतूह (अल्लाह दिया कोई चीज़) कबुल न करें।
- नक़लियात नक़ल नं. १२, ह. मियाँ सय्यद आलम बिन याकुब हुस्न विलायत (रजी)। - ह. महेदी माउद (अस) ने फरमाया, जहाँ कहीं से अल्लाह आपको दें, चाहे वो थोड़ा हो या बहुत इसमें से दसवा हिस्सा (उशर) दो अगर रोटी है, थोड़ी या बहुत दसवा हिस्सा दो अगर बहुत थोड़ा है तो इसमें से थोड़ा मूँगीयों को दो।
- नक़लियात नक़ल नं. १२, ह. मियाँ सय्यद आलम बिन याकुब हुस्न विलायत (रजी)। - कसब के बारे में महेदी माउद (अस) का फरमान। कसब के बारे में महेदी माउद (अस) ने फरमाया के, कसब मोमिन के लिए अच्छा है, जिस शख्स को पैगंबर का मक़ाम हासिल है उसके लिए कसब अच्छा है, वही कसब के हुदूद (शर्त) क़ायम रख सकता है फिर फ़रमाया के, कसब के सात हुदूद है।
- सय्यद मुहम्मद जौंनपुरी महेदी माउद (अस) का फ़रमान है के, आपने एक शख़्स से कहा “मर्द (परहेजगार) बनो के लोग जब आपके अमल को देखेंगे तो तुम्हारे जैसे बनेगे और जानेगे के सुबहान अल्लाह! महेदी के दायरे में ऐसे भी मर्दाने दीन हैं? दुसरे लोग भी खुदा के राह में आएंगे, कभी बंदे से भी मुलाखात होगी”
- नक़लियात मियाँ सय्यद आलम नक़ल नं. २६३.
No comments:
Post a Comment